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गीत(श्रम-जल) टपक-टपक कर श्रम-जल तन से, निर्धन का चित्कार रहा। यह लेकर आकार समझ लो, रोटी का आधार रहा।। श्रम की बूँदें अमृत होतीं, माटी को सोना करतीं। सोने जैसी फ़सल ...